Sunday, March 18, 2018

कोई ढूंढियो री!

कोई  ढूंढियो री!

कोई ढूंढियो री! अम्मां ढूंढियो री!
मेरे बस्ते ने चुरा ली, मेरे बस्ते ने चुराली
मेरी आँखों की नींद, 
मेरी रातों की नींद ,
कोई ढूंढियो री! अम्मां ढूंढियो री!

कोई ढूंढियो री! चाची! ढूंढियो री!
मेरी बुक्स  ने चुरा ली, मेरी बुक्स  ने चुराली
मेरी आँखों की नींद, 
मेरी रातों की नींद ,
कोई ढूंढियो री! चाची  ढूंढियो री!

कोई ढूंढियो री! भाभी! ढूंढियो री!
मेरे होमवर्क  ने चुरा ली, मेरे होमवर्क ने चुराली
मेरी आँखों की नींद, 
मेरी रातों की नींद ,
कोई ढूंढियो री! भाभी  ढूंढियो री!

कोई ढूंढियो री! मैडम  ढूंढियो री!
मेरे एग्जाम  ने चुरा ली, मेरे एग्जाम  ने चुराली
मेरी आँखों की नींद, 
मेरी रातों की नींद ,
कोई ढूंढियो री! मैडम! ढूंढियो री!

- रमेश तैलंग / 19/03/2018 

Thursday, March 15, 2018

पूर्णविराम



पूर्णविराम!

अम्मां, अपनी गली में है एक छेड़ूराम

आज धर दिया मैंने धप्पा
भागा करता पप्पा पप्पा
मैं भी गाती लारालप्पा
दे कर आई उसको अच्छा -सा  ईनाम.

छोटी हूँ पर इतनी भी ना
सुनूं मनचलों की, बोलूँ ना
आना जाना मैं  रोकूँ ना
आये-गए बिना चलता है किसका काम?

भैया भैया बोलो उनको
फिर भी समझ न आए उनको
गुस्स्सा है  अब बहुत अपुन को
कोमा से तो भला, लगा दूं पूर्णविराम .

- रमेश तैलंग /16-03-2018
चित्र सौजन्य : google  

नक्को! नक्को!


नक्को! नक्को!

बिस्तर बोला- सोजा, सो जा
मैं बोली नक्को! नक्को!
उठी, सैर को चलदी,लौटी
भरे ताजगी फिर  घर को.

सूरज ने सिंदूर दिया जो,
एक पुडिया में बाँध लिया
मिला धूप का छौना, उसको
गोदी में भर प्यार किया
कहा फूल ने - कल फिर आना, 
मैं बोली -  पक्को! पक्को!

छत के नल को बहते देखा,. 
उसका पानी बंद किया
घर वालों के संग बैठी  फिर 
छुट्टी का आनंद लिया

काम बटाया सबका थोडा
बदन हुआ -थक्को! थक्को!
 
- रमेश तैलंग /12/03/2018