Tuesday, April 9, 2013

दो गीत : रमेश तैलंग





- १ -

धान पराया हुआ
हल्दी पराई,
चढ़ गई नीलामी पर अमराई,

अपने रहे न घने नीम के साए,
गमलों में कांटे ही कांटे उगाए
पछुआ के रंग में रंगी पुरवाई,
ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई।


पानी तो बिक गया बीच बजारी,
धूप-हवा की कल आएगी बारी,
सौदागरों ने बड़ी मंडी लगाई।
ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई।


रोज दिखाके नए सपने सलोने,
हाथों में दे दिए मुर्दा खिलोने,
राम दुहाई, मेरे राम दुहाई।
ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई।





 - २ -


प्यारे, ये है मिठा .........स बतरस की।

प्रेम पगी बतियों के क्या माने
स्वाद चखे जो, बस वो ही जाने,
हर कोई इसे कहां पहचाने?
प्यारे, ये है मिठा .........स बतरस की।

बातें जब चलें तो चलती जाएं
जलतरंग जैसी बजती जाएं,
भारी मन हलका करती जाएं।
प्यारे, ये है मिठा .........स बतरस की।

बातें पलाशों जैसी दहकें,
बतें गुलाबों जैसी महकें,
बातें परिंदों जैसी चहकें
प्यारे, ये है मिठा .........स बतरस की।


बातों से मैल सभी धुल जाएं
मन की गांठे सारी खुल जाएं
बातों के हम कितने गुन गाएं?
प्यारे, ये है मिठा .........स बतरस की।


(अंचल भारती से साभार)
चित्र सौजन्य: गूगल 

1 comment:

  1. बातें पलाशों जैसी दहकें,
    बतें गुलाबों जैसी महकें,
    बातें परिंदों जैसी चहकें...
    WAAAH !!!

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