Friday, February 3, 2012

उत्तराधुनिक शिक्षा की विडंबना





दीन-हीन सब बैठें अपने-अपने घर.
लखपतिया स्कूल बनाएंगे अफसर.

खेतीबारी बदल गई मजदूरी में
पूंजी सारी निकल गई मजबूरी में
हाज़िर होते-होते रोज हुजूरी में
बिकने को हैं घर के सभी टीन-टप्पर.

धन के हारे, पहले मन को मारेंगे
स्वार्थ में अंधे, परिजन को मारेंगे
बिगड़ गए बच्चे, गुरुजन को मारेंगे
पहुंचेंगे ऊपर एक-एक सीढ़ी चढ़ कर

नए चलन की दुनिया बहुत रुलाएगी
सच्चाई आँखों के आगे आएगी
सपन खोर है, सब सपने खा जाएगी
भरी आँख से सपन न ऐसे देखा कर.

-रमेश तैलंग

चित्र सौजन्य: गूगल/सतीश कुमार चौहान.ब्लागस्पाट.कोम

1 comment:

  1. Bahut sahi chitr ukera hai Ramesh ji apne....ek katu yatharth hone ke sath hi chinta ka vishay bhi hai yah....
    Hemant

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