Friday, May 20, 2011

नानी की चिट्ठियां - 3

मेरे प्यारे चम्पू, पप्पू, टीटू, नीटू, भोलू, गोलू, किट्टी, बिट्टी,

चिंकी, पिंकी, लीला, शीला, लवली, बबली,

खुश रहो, स्वस्थ रहो और जुग जुग जियो!

आज सबसे पहले तुम्हे एक कहानी सुनती हूँ. जीते -जागते उस सच्चे इंसान की जो अपने ही देश का है और जिसे बच्चों से अगाध प्यार है. इस इंसान का नाम है वी. मणि.

वी मणि रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया बंगुलुरु में सहायक महाप्रबंधक रहे हैं. वे जब भी घर से अपने कार्यालय जाते तो उनके रास्ते में वहां का केंद्रीय कारागार पड़ता जिसके दरवाजे के आगे ऐसे बंदियों के सगे सम्बन्धी और उनके बच्चे रोते-बिलखते दीखते जिनके अभिभावक किसी न किसी अपराध में कारागार की सजा भुगत रहे थे. ऐसे बेसहारा बच्चों को देख कर वी मणि का मन अन्दर ही अन्दर पसीज उठता. उन्होंने निश्चय किया कि वे किसी भी तरह इन बच्चों का वर्त्तमान और भविष्य सुधारेंगे.

वी मणि जब सेवानिवृत्त हुए तो अपनी पत्नी सरोज के सहयोग से उन्होंने १९९९ में एक स्वेच्छिक संस्था बनाई. सो केयर नाम कि इस संस्था को बनाने में उन्होंने रिटायर्मेंट का सारा पैसे खर्च कर दिया. आज इस संस्था में सौ से अधिक बच्चे आश्रय ले कर अपना भविष्य संवार रहे हैं. वी. मणि कि पत्नी तो अब इस दुनिया में नहीं है पर मणि-दम्पति द्वारा देखा गया सपना अब सच हो कर एक दशक से ऊपर का हो चुका है.

वी. मणि हृदय रोग के आघात से उबर चुके हैं फिर भी वे निरंतर अपना समय इस संस्था को देते हैं और बंदियों के बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा सहित सभी तरह से स्वालंबी बनाने कि व्यवस्था करते हैं. कभी-कभी जब कोई बंदी अपनी सज़ा काट कर या पेरोल पर छूट कर अपने बच्चों से मिलने आता है तो वी. मणि की इस संस्था का तहे दिल से आभार व्यक्त करने से नहीं चूकता. चाहने पर भी बंदियों का मन अपने बच्चों को वापस घर ले जाने का नहीं होता. वे कहते हैं - "उन जैसे हत्या, डकेती के अपराधियों के बच्चों को समाज सहजता व सम्मान सहित कैसे स्वीकारेगा. उनके माता पिता तो अब वी मणि ही हैं.

मैं सोच रही हूँ कि कहाँ तो अपने देश में वी. मणि जैसे लोग जो अपना सर्वस्व सौंप कर बच्चों का जीवन संवार रहे हैं और कहाँ ऐसे निर्मम, देशद्रोही, दानवीय प्रवृत्ति के लोग जो अपनी स्वस्थ्लिप्सा की पूर्ति हेतु मासूम बच्चों को सौ-सौ रुपये देकर बम रखवाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

तुम लोगों से दूर पड़ी मैं दिन रात तुम सबके बारे सोचती रहती हूँ कि कहीं कोई बुरा साया तुम्हारे सर पर न पड़े. भय लालच या भावावेश के कारण ही तुम्हारे जैसे मासूम बच्चे आतंकवादी संगठनों के चंगुल में फंस जाते हैं और जब कोई भाग्यशाली बच्चा उस चंगुल से बाहर निकलता है तो उसके पास एक भयावह कहानी सुनाने को होती है.

ईश्वर तुम सबकी रक्षा करे और संसार के सही भटके हुए लोगों को सद्बुद्धि और सही रास्ता चुनने के प्रेरणा दे, इस आशीर्बाद के साथ

तुम्हारी अपनी नानी.

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